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किरदार

किरदार
हर आदमी निभा रहा है ,
अपना- अपना किरदार ,
कुछ मुखोटें के पीछे ,
तो कुछ सामने आकर ।।
दर्द है कितना भरा हुआ ,
उस हँसते चेहरे के पीछे ,
मुखोटा हैं तों क्या हुआ ,
दर्द समेटें है जा रहा ।
हर आदमी निभा रहा है ,
अपना-अपना किरदार ।।।।।।
रिश्तों के धागो में बधकर ,
फ़र्ज़ निभाते जा रहा है ,
सब कुछ तो किया ,
यही सोचते जा रहा ।
कभी तो पहल उधर से होती ,
यही महसूस करते जा रहा ।
हम न होते , तुम न होते
तो भी बहुत कुछ होता ,
ज़िंदगी किसी के लिये रुकती ,
तो समय बलवान न होता ।
हर किरदार अपने में ,
कुछ तो समटे , जा रहा है ।
कुछ पेंट के लिए कमा रहा ,
तो कोई प्यार लूटा रहा ,
ज़िंदगी है दाव पर रखी ,
फिर भी है उससे निभा रहा ।
आँखें बया कर रही है सब कुछ ,
फिर भी अपना किरदार है निभा रहा !!!!

                         निधि शर्मा लेखिका गाज़ियाबाद 

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