
इस बार होलिका दहन को लेकर उपजे संशय का निराकरण
हिन्दु धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार, होलिका दहन, जिसे होलिका दीपन और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, को सूर्यास्त के पश्चात प्रदोष के समय, जब पूर्णिमा तिथि व्याप्त हो, करना चाहिये। भद्रा, जो पूर्णिमा तिथि के पूर्वाद्ध में व्याप्त होती है, के समय होलिका पूजा और होलिका दहन नहीं करना चाहिये। सभी शुभ कार्य भद्रा में वर्जित हैं।
होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये –
भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
इस फाल्गुन पूर्णिमा केवल पहले दिन (06मार्च 2023) को ही प्रदोष व्यापिनी है सात मार्च को वह उत्तरी भारत वह प्रदेश को बिलकुल स्पर्श नहीं कर रही है
06 मार्च को प्रदोषकाल जो की शाम 06:25 से रात्रि 08:55 तक रहेगा , भद्रा से व्याप्त है और भद्रा निशिथ (अर्धरात्रि) से आगे जाकर अगले दिन07 मार्च को यद्यपि पूर्णिमा सा र्ध त्रियाम व्यापिनी ( साढ़े तीन प्रहर से अधिक व्याप्त है )परंतु प्रतिपदा तिथि ह्रासगमिनी (अर्थात् प्रतिपदा का मान पूर्णिमा के कुल मान से कम होने के कारण) होने से पहले दिन 06 मार्च को प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा में भद्रा मुख/पुच्छ का विचार न करके भद्रा में प्रदोषकाले “होलिका-दहन “ किया जाएगा