उत्तरप्रदेश
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सुप्रीम कोर्ट ने 2000 रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में एक सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराते हुए कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 20 के तहत रिश्वत की राशि बड़ी हो या छोटी, यह जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यदि रिश्वत के आरोप साबित होते हैं, तो इसमें राशि की मात्रा को लेकर कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
रिश्वत की राशि बहुत कम है
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 20(3) के तहत, यदि रिश्वत की राशि बहुत कम है, तो भी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ प्रतिकूल अनुमान लगाने का अधिकार कोर्ट के पास है। इस धारा के अनुसार, रिश्वत की राशि को उस प्रस्तावित सेवा के अनुपात में देखा जाना चाहिए।
अनुमान लगाना अप्रासंगिक
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि जब यह साबित हो जाए कि किसी कर्मचारी ने रिश्वत प्राप्त करने के लिए समझौता किया है, तो मामले में अनुमान लगाना अप्रासंगिक हो जाता है।
समझौते के तहत भुगतान
कोर्ट ने कहा, “धारा 20 तभी लागू होगी जब रिश्वत की मांग और की गई कार्रवाई के बीच कोई संबंध न हो। लेकिन, यदि यह साबित हो जाता है कि समझौते के तहत भुगतान प्राप्त हुआ है, तो यह संबंध स्पष्ट है और अनुमान अप्रासंगिक हो जाता है।”