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पहली बार सतह पर आया संघ-भाजपा कुनबे का मतभेद, “कुलीन कुल” में कलह..!!

आरएसएस मुखिया के बेबाक बयान ने बयाँ की संघ परिवार की अंदरूनी कलह की कहानी

मोदी-3″ का गठन होते ही सामने आई “मोदी-2” सरकार से आरएसएस की नाराज़गी

आरएसएस चाहता था राम मंदिर का उदघाटन समारोह चुनाव बाद और गैर राजनीतिक हो?

छह माह पूर्व ही संघ ने सरकार को चेताया था- हिंदुत्व की लहर व मोदी नाम से नही होगी नैया पार

शाह की रीति-नीति पर आंख मूंदकर भरोसा करना भारी पड़ा मोदी को, संघ की भी नही सुनी

संघ प्रमुख बोले वो बाते, जो प्रतिपक्ष के मुंह पर लगातार थी, सरकार को दिखाया आईना

आरएसएस मुखिया और सरकार के मुखिया के बीच 3 बरस से छाया था अबोलापन

इस कुल को कुलीनों का कुल कहा जाता हैं। जहां मतभेद तो होते है लेकिन मनभेद नही। यहां राष्ट्रकाज होता हैं। निजी कामकाज नही। यहां व्यक्ति नही, संगठन अहम होता हैं। जहां विरोधी भी अपना होता है। क्योंकि देर-सबेर वो भी परिवार का हिस्सा होना है। इसी भाव से विरोध को देखा समझा जाता है। ऐसे ही क्या 100 बरस की यात्रा यहां तक आ गई क्या? अगर इतने उदात्त भाव न होते तो आज दुनिया का सबसे बड़ा परिवार होता जिसे ” संघ परिवार” कहा जाता हैं। उस परिवार में सामुहिक नेतृत्व, सामूहिक चिंतन और सामुहिक रूप से समाधान निकाला जाता है। एकला चलो रे का भाव संगठन स्तर पर होता है, व्यक्ति स्तर पर नही। वहां परिवार से जुड़ा ” राजनीतिक लड़का” अकेला ही चलने लगा, सब कुछ स्वयम को समझने लगा। समझाईश तो जरूरी है न नही तो “घर के बच्चे ” को बिगड़ते कितनी देर लगेगी वो भी अन्य दल यानी परिवार जेसा हो जाएगा। तो फिर कुल कैसे कुलीन कहलायेगा?

इसलिए कलह मतभेद सतह पर आते है तो भी अच्छे है-भविष्य के लिए। क्योंकि परिवार की ये एक सदी की यात्रा सिर्फ सत्ता के लिए नही हैं। ये तो भरत भू के पुनः अखंड व विश्व गुरु होने के लिए शुरू हुई है।

कुलीनों का कुल कहे जाने वाले संघ परिवार में पहली बार कलह सतह पर सामने आई हैं। ये कलह परिवार की राजनीतिक शाखा भाजपा को लेकर उज़ागर हुई हैं। दोनों में परस्पर कितने गहरे मतभेद गहरा गए हैं, ये भी खुलासा हो गया। ये ख़ुलासा स्वयम परिवार के मुखिया के मुख से हुआ। वह भी आरएसएस के उस शिक्षा-दीक्षा वर्ग के समापन मौके पर, जो आरएसएस की ट्रेनिग की सबसे अहम परीक्षा होती है और जिसमे पात्रता पाने के लिए कड़ी परीक्षा से गुजरना होता हैं। कभी इसे आरएसएस का तृतीय वर्ष प्रशिक्षण कहा जाता था।

ये शिक्षण वर्ग सिर्फ नागपुर में होता है और वह भी आरएसएस मुख्यालय में। इसमे देशभर से चुनिंदा व चयनित स्वयमसेवक शामिल होते हैं। संघ मुखिया डॉ मोहनराव भागवत ने इन्ही स्वयंसेवको के बीच ख़ुलकर वे सब बातें कहीं, जिसे लेकर मोदी-2 सरकार प्रतिपक्ष के निशाने पर पूरे चुनाव में रही। इसमे सरकार का अहंकार व विपक्ष के साथ व्यवहार अहम था। संघ सुप्रीमो ने प्रतिपक्ष को भी नसीहत दी कि झूठ बोलकर चुनाव नही लड़ना चाहिए। गौरतलब है कि आम चुनाव में विपक्षी गठबंधन बार बार संविधान बदलने व आरक्षण खत्म करने की बात कह रहा था।

ये पहला मौका है जब परिवार के मुखिया को अपने ही राजनीतिक शाखा को इस तरह समझाईश देना पड़ी। आमतौर पर आरएसएस सरकार के कामकाज पर सार्वजनिक बोलवचन से बचता ही रहा हैं। लेकिन लगता है इस बार ” पानी नाक तक” आ गया था। आरएसएस की कार्यनीति में सदैव एक वाक्य अहम रहता है और वह है- में नही तू यानी में की जगह तू। “मैं” का संघ परिवार में कोई स्थान नही सब सामूहिक, सब एक दूसरे के सहयोग से का भाव।

लेकिन उसी संघ की राजनीतिक शाखा में सिर्फ “में ही में” गूंजने लगा था। सामूहिकता का भाव एक तरह सरकते जा रहा था और व्यक्तिवाद घर करता जा रहा था। तभी तो सरकार की तरफ से नारा गढ़ने वालो ने भाजपा की जगह ” मोदी की ग्यारंटी” शब्द गढ़ा। हैरत की बात है कि सरकार के मुखिया ने उसे आत्मसात भी कर लिया। जबकि वे तो स्वयम को संघ की घुट्टी पिया स्वयंसेवक की स्वयम को निरूपित करते थकते नही थे। पार्टी पर व्यक्ति की सवारी होते देख रहा।

आरएसएस आखिर कब तक चुप रहता?,क्योंकि सवाल आरएसएस और ही उठने लग गए थे कि भागवतजी क्या कर रहे है, उन्हें नही दिख रहा ये सब?
सर संघचालक किसी उचित मौके की तलाश में ही थे। लिहाज़ा उन्होंने ” मोदी-3″ का आगाज़ होते ही अपनी आवाज़ खोली। वे नही चाहते थे कि मोदी-3 सरकार में भी मोदी-2 सरकार की कार्यशैली घर करें नतीज़तन परिवार के मुखिया ने सरकार के शपथ लेने और मन्त्रिमण्डल का गठन होते ही साफ साफ सन्देश दे दिया कि प्रधान सेवक कैसा होता है या होना चाहिए। सरकार को अहंकार से परे और स्थापित मर्यादाओं का पालन करना चाहिए। विपक्ष के प्रति व्यवहार से लेकर उसकी जरूरत को भी संघ मुखिया ने स्पष्ट किया। चुनाव की लड़ाई को युद्ध मे तब्दील करने पर पक्ष विपक्ष दोनों को निशाने पर भी लिया और ये भी दो टूक कहा कि झूठ की बुनियाद पर चुनाव न लड़ा जाए। लेकिन परिवार के मुखिया के सम्बोधन का बड़ा हिस्सा अपने अनुषांगिक संगठन और उसके नेताओ के लिए ही था। 2014 से 2024 तक की सरकार की यात्रा पर निरंतर नजर रखने के बाद आरएसएस का ये आक्रामक स्वरूप सामने आया हैं। संघ मुखिया के बयान ने मोदी-3 सरकार को सन्नाटे में खींच दिया। शायद उसी का नतीजा रहा कि कल ही देश के प्रधानमंत्री ने बयान दिया कि सब लोग सोशल मीडिया से “में मोदी का परिवार” का प्रचार हटा लेवे। जब बरसो से इस देश मे संघ परिवार” स्थापित है तो ये नया परिवार कहा से आया और क्यो आया?

संघ चाहता था चुनाव बाद हो रामजी का काज
क्या आरएसएस ये चाहता था कि अयोध्या जी मे राम मंदिर का उदघाटन व रामलला का प्राण प्रतिष्ठा समारोह चुनाव बाद हो? ये सवाल संघ गलियारों से ही निकलकर सामने आया है कि आरएसएस की राय थी कि राम मंदिर का मामला देश की आस्था का विषय है, राजनीति का नही। लिहाज़ा पूरा कार्यक्रम राजनीति से परे हो। सूत्रों की माने तो संघ तो इसके पक्ष में भी नही था कि देश के पंतप्रधान जजमान की भूमिका निभाये। संघ की मंशा थी कि ये काम साधु संतों व शंकराचार्यो के जिम्मे हो। राम जन्मभूमि आंदोलन के लालकृष्ण आडवाणी जैसे रथी की मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह से दूरी भी संघ को आखरी।

संघ-सरकार के मुखिया में लंबे समय से था अबोलापन..!!
संघ व सरकार के मुखिया के बीच लंबे समय से अबोलापन बना हुआ था। याद नही आती दोनों के बीच परस्पर मेल मुलाकात की कोई तस्वीरे। जबकि ये सर्वविदित है कि वर्तमान आरएसएस प्रमुख ही मोदी की गुजरात से दिल्ली दस्तक के प्रबल पक्षधर थे। वे नही होते तो आडवाणी युग की मौजूदगी के बावजूद मोदी का दिल्ली का नायक बनना असम्भव था। संघ मुखिया ही सबसे बड़ी ढाल बनकर खड़े रहे। 282 कक साथ मोदी और उनकी टीम अपेक्षा पर खरी भी उतरी। 2019 में भी ये करिश्मा कायम रहा। सूत्र बताते है कि सरकार में तमाम विकृतियों ने घर 2019 की सरकार के बाद किया। ऐसा नही कि संघ ने चेताया नही लेकिन सरकार ने सुना नही। संघ चेता चुका था कि सिर्फ हिंदुत्व व ब्रांड मोदी से कुछ नही होगा। हुआ भी वही। सूत्रों की माने तो इस मामले में मोदी को सबसे बड़ा नुकसान सरकार में नम्बर 2 की पोजिशन वाले अमित शाह के कारण हुआ। शाह की रीति-नीति पर आंख मूंदकर भरोसा करना आखिरकार मोदी को भारी पड़ा। जिसका खामियाजा आज परिवार के मुखिया के मुख से खरी खरी के रूप में सामने हैं।

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