
सच्चे संत को मेरा शत शत नमन-वंदन-अभिनंदन
संत रविदास जी के जन्म स्थान मण्डुआडीह, वाराणसी उ.प्र. के मंदिर में गुरु जी के दर्शनार्थ लोगों का जन सैलाब उमड़ पड़ा है। पूरे देश में जगह जगह बड़े ही हर्षोल्लास के साथ गुरु रविदास जी महाराज का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। उनकी जयंती के पावन पर्व पर जगह-जगह प्रभात फेरी और शोभयात्रा निकाली जा रही हैं। संत शिरोमणि गुरु रविदास का साहित्य में प्रचलित नाम ‘रैदास’ था। सन्त रविदास मूर्ति पूजा, कर्मकाण्ड, जप-तप, तीर्थ यात्रा तथा धार्मिक ग्रंथों के पाठ को महत्व नहीं देते थे।संत रविदास बहुत ज्ञानी थे उन्होंने शास्त्रार्थ में तमाम ब्राह्मणों को परास्त किया था। उन्होंने शरीर की पवित्रता की बजाय मन की पवित्रता को महत्व दिया। उन्होंने कहा कि –
"मन चंगा तो कठौती में गंगा"
सदगुरु रविदास जी महाराज समानता के पक्षधर थे। वे छुआछात,ऊँचनीच और जातिवाद के घोर विरोधी थे। वे मानवता के सच्चे पुजारी थे। वे वास्तविक संत थे क्योंकि उनके अंदर कोई काम, क्रोध, मद, लोभ की भावना नहीं थी। वे दीन दुखियों की सेवा को परम धर्म समझते थे। वे सत्य के पथ के अनुगामी थे उन्होंने सत्संग और गुरु भक्त्ति को सदैव महत्व दिया।
ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ, मिले सबन को अन्न।
छोटे- बड़े सब सम बसें, 'रैदास' रहें प्रसन्न।।
जाति पांति के फेर में, उलझि रहे सब लोग।
मानुषता को खात है, रैदास जाति का रोग।।
जाति - जाति में जाति हैं जो केतन के पात ।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जबतक जाति न जात।।
सच्चे संत को मेरा शत शत नमन-वंदन-अभिनंदन
🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵