हृदय रोग के बाद दुनिया भर में मृत्यु और विकलांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन
जानलेवा स्ट्रोक के लिए सबसे खतरनाक है बीपी डॉक्टरों ने इस पर चेतावनी जारी किया और कहा कि वक्त रहते अगर कंट्रोल कर लिया जाए तो बहुत सी मौतों से बचा जा सकता है
हृदय रोग के बाद दुनिया भर में मृत्यु और विकलांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण हाई ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन है, खासकर वह जिसका पता नहीं चला हो और जिसका इलाज नहीं हुआ हो
यह जानलेवा स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण बनता है. विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक, 64 प्रतिशत स्ट्रोक के मरीज हाई ब्लड प्रेशर के शिकार होते हैं. भारत में भी स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टरों ने इसको लेकर आगाह किया है. उनका कहना है कि अब हाई ब्लड प्रेशर के इलाज पर ध्यान केंद्रित करने का समय है. इसके लिए एक आसान रणनीति बनाकर लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है.
एम्स, ऋषिकेश के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. प्रदीप अग्रवाल का कहना है, ‘हाई ब्लड प्रेशर का इलाज आसानी से हो सकता है. यह स्ट्रोक का बड़ा कारण है, जिससे न केवल मरीज की अकाल मृत्यु और आजीवन विकलांगता होती है बल्कि यह उनके परिवारों को बड़ा आर्थिक झटका भी देता है. साथ ही परिवार की आमदनी बंद हो जाती है. भारत में तेजी से स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं. हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इसका मतलब है आमदनी का नुकसान और कार्य-उत्पादक जीवन में कमी
वर्ष 2016 के आंकड़ों के मुताबिक, स्ट्रोक पूरी दुनिया में अनुमानित 56 लाख लोगों की मौत का जिम्मेदार है. जबकि इसकी वजह से 11.64 करोड़ डिस्बेलिटी-एडजस्टेड लाइफ ईयर (DALY) का नुकसान होता है. भारत में प्रति एक लाख आबादी पर 116-163 लोग स्ट्रोक के शिकार होते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि भारत में हाई ब्लड प्रेशर के बढ़ते मामलों से देश पर स्ट्रोक का बोझ बढ़ने की प्रबल आशंका है.
एम्स, जोधपुर के सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. सुरेंद्र देवड़ा सचेत करते हैं कि सीवियर हाइपरटेंशन (गंभीर उच्च रक्तचाप) का संबंध स्ट्रोक के रोगियों की उच्च मृत्यु दर से है. उनका कहना है कि स्ट्रोक न केवल उच्च मृत्यु दर का कारण है बल्कि यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी एक बड़ी चिंता का भी कारण है. स्ट्रोक से उबरे 50 प्रतिशत मरीज अपना बाकी जीवन विकलांगता में गुजारते हैं. इसका विनाशकारी सामाजिक-आर्थिक प्रभाव पड़ता है.
दक्षिण एशियाई देशों में स्ट्रोक के मामलों में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि
एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले चार दशकों में दक्षिण एशियाई देशों में स्ट्रोक के मामलों में 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2050 तक नए स्ट्रोक का 80 प्रतिशत बोझ निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर पड़ेगा. आने वाले सालों में भारत में भी स्ट्रोक के मामले व्यापक रूप से बढ़ेंगे, यह तय है.
एम्स, बठिंडा के कम्युनिटी एवं फैमिली मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर डॉ. राकेश कक्कड़ का कहना है, “स्ट्रोक-हाइपरटेंशन संबंध पर अभी से ध्यान देने का फायदा भविष्य में मिलेगा. अब हमें वह करना चाहिए जो हम हाई ब्लड प्रेशर से होने वाले नुकसान से बचने के लिए कर सकते हैं. इसका इलाज आसानी से उपलब्ध है और सस्ता है. इलाज उपलब्ध कराना और लोगों को इसका पालन करना सुनिश्चित करना, स्ट्रोक के खिलाफ हमारी रक्षा प्रणाली को मजबूत करने में एक लंबा रास्ता तय कर सकता है.
बेहद आसानी से हाई बीपी की जांच हो सकती है और इसकी दवाएं भी सस्ती हैं. इसके बावजूद हाई ब्लड प्रेशर अब पूरी तरह से स्वास्थ्य संकट के रूप में सामने आ चुका है. चार में से एक वयस्क भारतीय इस समस्या से पीड़ित हैं. हाई बीपी के इलाज को प्राथमिकता मिले और इसके लिए एम्स बठिंडा, जोधपुर, गोरखपुर और ऋषिकेश ने एक नई साझेदारी शुरू की है. इसमें इन्हें ग्लोबल हेल्थ एडवोकेसी इन्क्यूबेटर (जीएचएआई) का भी समर्थन प्राप्त है.
दुनियाभर में बीपी के प्रसार में 25 प्रतिशत कमी लाने की कोशिश
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), इंडियन काउंसिल ऑफ रिसर्च (भारतीय अनुसंधान परिषद) और रिजॉल्व टू सेव लाइव्स (तकनीकी भागीदार) के नेतृत्व में एक बहु हितधारक राष्ट्रव्यापी पहल “इंडिया हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव (IHCI) की शुरुआत की गई है. इस पहल का मकसद वर्ष 2025 तक हाई ब्लड प्रेशर के प्रसार में 25 प्रतिशत तक की कमी लाने की भारत की प्रतिबद्धता को पूरा करना है. इस प्रोग्राम को जून 2022 तक 21 राज्यों के 105 जिलों के 15 हजार से ज्यादा स्वास्थ्य केंद्रों में अमल में लाया जा चुका था. हाई ब्लड प्रेशर के 25 लाख मरीजों को इस प्रोग्राम के तहत नामांकित किया गया है. साथ ही इस बात पर भी ध्यान रखा जा रहा है कि ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने के लिए वे उनका पालन करते रहें.