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गोंडा : सातवीं और आठवीं मोहर्रम का जुलूस शांतिपूर्ण संपन्न, या हुसैन के नारों से गूंज उठा परसपुर

परसपुर (गोंडा)। शुक्रवार की शाम आठवीं मोहर्रम के मौके पर परसपुर नगर व ग्रामीण अंचलों में गमगीन माहौल के बीच जुलूस-ए-आठवीं निकाला गया। कटहरी बाग, शान नगर, प्रेम नगर, साईं तकिया, नई बस्ती, अंजही, गाड़ी बाजार, आटा, बनवरिया समेत सभी इमाम चौकों से जुलूस पारंपरिक मार्गों से होते हुए निकले। जुलूस में युवा या हुसैन की सदाओं के साथ ढोल-ताशा बजाते हुए आगे बढ़े। गाड़ियों पर सजे ताजिए, अलम, मक्का-मदीना व कर्बला की झांकियां आकर्षण का केंद्र रहीं। डीजे लाइटों से सजी रथनुमा झांकियों में पैगंबरों के आस्ताने और ‘शान-ए-हिंदुस्तान’ की तस्वीरें भी नजर आईं। अकीदतमंदों ने नौहा और मातम के साथ कर्बला की शहादत को याद किया।

सातवीं और आठवीं मोहर्रम का जुलूस पूरी तरह शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ। परसपुर थाना प्रभारी शारदेंदु कुमार पांडेय पुलिस बल के साथ पूरे क्षेत्र में भ्रमणशील रहे। महिला व पुरुष आरक्षियों के साथ उपनिरीक्षकों ने भीड़भाड़ वाले स्थानों पर पैनी निगरानी रखी। बालपुर रोड व करनैलगंज आटा मार्ग पर जुलूस के दौरान भारी भीड़ उमड़ी। गुरुवार को ताजियों की दुकानों पर खरीदारी के लिए भीड़ देखी गई, वहीं शुक्रवार को नगर के विभिन्न चबूतरों से कमेटियों ने जुलूस निकालकर आठवीं मोहर्रम का मातम किया।

शनिवार को नगर के अलग-अलग मोहल्लों की ताजिया समितियों द्वारा ताजियों को चौतरे पर रखा जाएगा। इस अवसर पर रात्रि भर मातमी नौहे, सीना-कोबी और मर्सिए पढ़े जाएंगे। अकीदतमंद कर्बला के शहीदों की याद में रातभर जागकर मातम मनाएंगे और इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हुए इंसानियत का पैगाम देंगे। रविवार 6 जुलाई को मोहर्रम की 9वीं तारीख को नगर सहित विभिन्न क्षेत्रों से ताजिये जुलूस की शक्ल में करबला की ओर रवाना होंगे। करबला एक प्रतीकात्मक स्थल होता है, जहां जाकर ताजियों को दफन किया जाता है। यह दफन प्रतीक है उस शहादत का, जो हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने अन्याय, ज़ुल्म और अधर्म के विरुद्ध दी थी।

करबला में ताजियों को मिट्टी में मिलाकर यह दर्शाया जाता है कि दुनिया की सारी शान-ओ-शौकत नश्वर है और सच्चाई के लिए दी गई कुर्बानी कभी मिटती नहीं। दफन के समय ‘हाय हुसैन’, ‘हुसैन ज़िन्दाबाद’, ‘या अली’, ‘या हुसैन’ जैसे नारों से माहौल गूंज उठता है और अकीदतमंद अश्कों के साथ अंतिम विदाई देते हैं। करबला में दफन की यह रस्म आशूरा की रात के लिए भूमिका बनाती है, जब 10वीं मोहर्रम को इमाम हुसैन की शहादत को पूरी दुनिया याद करती है।

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