आकाश आनंद को बसपा की बागडोर क्यों नहीं सौंप रहीं मायावती,इसके पीछे है बड़ा कारण?…..
लखनऊ।पूर्व मुख्यमंत्री बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती एक बार फिर से बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष 5 साल के लिए चुनी गई हैं।सियासी पंडित अंदाजा लगा रहे थे कि शायद मायावती राजनीति से संन्यास ले लें और अपने भतीजे आकाश आनंद को नई जिम्मेदारी दे दें।मायावती ने सियासी पंडितों के अंदाज़ों पर विराम लगाते हुए एक बार फिर से बसपा की जिम्मेदारी अगले 5 सालों तक के लिए खुद संभाल ली है।मायावती अगले 5 सालों में 73 साल की हो जाएंगी।तो क्या यह माना जाए कि मायावती को एक अनचाहा डर राजनीति में बने रहने के लिए प्रेरित करता रहता है।
बसपा में एक तरफ राष्ट्रीय अधिवेशन हो रहा था तो वहीं दूसरी तरफ पूरे देश से आए विशेष डेलीगेट्स इस बात को मान रहे थे कि बसपा कार्यालय में कुछ नया होगा,लेकिन एक बार फिर से बसपा ने मायावती को न सिर्फ 5 साल के लिए अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना, बल्कि कई सारे राजनीतिक संदेश भी दे दिए।वास्तव में इसके पीछे सबसे बड़ा तर्क यह माना जा रहा है कि मायावती खुद को कमजोर नहीं दिखाना चाहती हैं।राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से ठीक 1 दिन पहले तेजी से शोर उठा कि मायावती राजनीति से संन्यास ले रही हैं।मायावती ने न सिर्फ इस खबर का खंडन किया, बल्कि कठोरता से यह भी कहा कि उनके विरोधी चाहते हैं कि वह राजनीति से संन्यास ले लें, लेकिन वह राजनीति में बनी रहेंगी।खास तौर से दलितों के हक के लिए लड़ाई लड़ती रहेंगी।
मायावती इस बात का संदेश देना चाहती है कि वह अभी कमजोर नहीं हुई है।हालांकि पिछले कुछ सालों में बसपा के प्रदर्शन को देखा जाए तो कभी 30 फीसदी वोट मिला करता था अब बसपा सीधे 9 फीसदी के वोट बैंक पर आ गई है।यही नहीं बसपा ने लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई है।बसपा का एक भी एमएलसी नहीं है।बसपा का सिर्फ एक विधायक उमाशंकर सिंह है जो कि अपने बल पर चुनाव जीते हैं।एक बार फिर से बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के पीछे मायावती की सबसे बड़ी सोच यही है कि वह अपने विरोधियों और आसपास के रहने वालों को संदेश दे सकें कि वह कमजोर नहीं पड़ी हैं।वह पार्टी को जिस तरह से संभाल रही थी आगे भी संभालती रहेंगी।साल 2003 में मायावती ने बसपा की कमान संभाली थी। इस तरह से देखा जाए तो मायावती अब 2029 तक बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रहेंगी।मायावती अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद को लेकर भी थोड़ा सा सशंकित दिखाई देती हैं।
आकाश आनंद को 2019 में पहली बार बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त किया गया और फिर पिछले साल दिसंबर में उन्हें मायावती का राजनीतिक उत्तराधिकारी नामित किया गया। हालांकि मई 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान योगी सरकार को आतंकवादियों की सरकार कहा था।आकाश आनंद की यह टिप्पणी सीतापुर में एक पार्टी रैली में नफरत भरे भाषण को लेकर उनके खिलाफ यूपी पुलिस की कार्रवाई के बाद आई थी।सीतापुर में जिस तरह का बयान आकाश आनंद ने दिया था उसको लेकर मायावती काफी आहत थीं और आकाश आनंद से उत्तराधिकार का पद भी छीन लिया था।मायावती ने आकाश आनंद को नेशनल कोऑर्डिनेटर के साथ कई राज्यों में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव का प्रभारी बना दिया है,लेकिन मायावती खुद तमाम चुनावी कवरेज के साथ-साथ बसपा की गतिविधियों पर नजर रखना चाह रही हैं।अगर माना जाए तो आकाश आनंद को और ज्यादा मैच्योर करने के मकसद से मायावती ने एक बार फिर से बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी हैं।वहीं तीसरा बड़ा कारण चंद्रशेखर आजाद भी नजर आते हैं।चंद्रशेखर आजाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट से सांसद हैं और पिछले दिनों चंद्रशेखर आजाद ने हरियाणा में गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है।मायावती इस बात को नहीं चाहती हैं कि चंद्रशेखर आजाद जो कि नौजवान दलितों में मशहूर हो रहे हैं, वह राजनीति में आगे बढ़ें।शायद ही बड़ा कारण है कि मायावती खुद को न सिर्फ बसपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना रहने देना चाहती हैं ,बल्कि आगामी चुनाव के प्रबंधन को भी खुद देखना चाहती हैं।
बसपा संस्थापक कांशीराम की मौत के बाद बसपा जिस तरह से सत्ता में आई उसका सीधा श्रेय मायावती के कुशल प्रबंधन को जाता है।इस बात में कोई शक नहीं है कि पिछले 21 सालों से बसपा का कुशल प्रबंधन मायावती चला रही हैं।मायावती अपने उत्तराधिकारी आकाश आनंद को 30 फीसदी वोट बैंक से 9 फीसदी वोट बैंक वाली पार्टी नहीं देना चाहती हैं,बल्कि पार्टी को नई ऊंचाइयों पर ले जाकर उत्तराधिकारी को नई जिम्मेदारी देने की चाह रखती हैं।
मायावती की माया अपंरपार है।यूपी की राजनीति में मायावती को लेकर ये कहावत बड़ी मशहूर है।मायावती का नया अवतार किसी की समझ में नहीं आ रहा है।आखिर विधानसभा उपचुनाव में बसपा का हाथी किसे कुचलने चला है,रहस्य गहराता जा रहा है।