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कार्तिक कृष्ण पक्ष षष्ठी प्रातः ६/३९ तक उपरि सप्तमी वुधवार आर्द्रा नक्षत्र दिन में ११/२३ तक उपरि पुनर्वसु २३ अक्टूबर २०२४
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यद् युज्यतेऽसुवसुकर्ममनो वचोभि: देहात्मजादिषु नृभिस्तदसत् पृथक्त्वात।
तैरेव सद् भवति यत् क्रियतेऽपृथक्त्वात्। सर्वस्व तद् भवति मूलनिषेचनं यत्।।
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अर्थात मनुष्य अपने प्राण,धन, कर्म,मन और वाणी आदि से शरीर एवं पुत्र आदि के लिए जो कुछ करता है वह व्यर्थ ही होता है; क्योंकि उसके मूल में भेद वुद्धि वनी रहती है। परन्तु उन्हीं प्राण आदि वस्तुओं के द्वारा भगवान के लिए जो कुछ किया जाता है वह सव भेदभाव से रहित होने के कारण अपने शरीर, पुत्र और समस्त संसार के लिए सफल हो जाता है।जैसे वृछ की जड़ में पानी देने से उसका तना, टहनियां और पत्ते सब के सब सिंच जाते हैं,वैसे ही भगवान के लिए कर्म करने से सबके लिए हो जाते हैं।। (श्रीमद्भागवत)
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मंगलमय शुभदिन सुप्रभात
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