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प्रभु श्रीराम के जहां-जहां पड़े पैर,लगेंगे वहां श्रीराम स्तंभ, बताएंगे राम की संस्कृति

अयोध्या।मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के पैर जहां जहां पड़े, वहां पर श्रीराम स्तंभ स्थापित किया जाएगा।श्रीराम स्तंभ आने वाली पीढ़ियों को प्रभु श्रीराम की संस्कृति को बताने का काम करेंगे।ये सभी स्तंभ पीढ़ियों को बताएंगे कि कभी प्रभु श्रीराम के पैर इस स्थान पर भी पड़े थे।इस संबंध में श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने पूरे राम वन गमन मार्ग को चिन्हित करते हुए बड़ा निर्णय लिया है।इसके तहत अयोध्या से जनकपुर और अयोध्या से श्रीलंका तक कुल 292 स्थानों पर श्रीराम स्तंभ लगेगा।रविवार को अयोध्या के कारसेवकपुरम में आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्ता सम्मेलन में इस महायोजना की औपचारिक ऐलान हुआ।इस सम्मेलन में देशभर से आए रामभक्त,शोधकर्ता और समाजसेवी शामिल हुए।

5000 किमी, 292 स्थान

बता दें कि श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास ने श्रीराम वनगमन मार्ग पर 292 महत्वपूर्ण स्थानों को चिन्हित किया है। ये वो स्थान हैं,जहां प्रभु श्रीराम ने अपने कुछ पल गुजारे थे। इन सभी स्थानों पर श्रीराम स्तंभ स्थापित किए जाएंगे,यह स्तंभ लगभग 15 फीट ऊंचे होंगे और अयोध्या से लेकर नेपाल और श्रीलंका तक लगभग पांच हजार किलोमीटर के पथ पर लगाए जाएंगे।श्रीराम स्तंभ महज एक स्थापत्य चिन्ह नहीं होंगे,बल्कि यह सनातन परंपरा,आस्था और सांस्कृतिक गौरव के प्रतीक होंगे।प्रभु श्रीराम के पैरों की पावन स्मृति को अक्षुण्ण बनाए रखने की यह दिव्य कोशिश है,इसके लिए एक विस्तृत और दिव्य सांस्कृतिक यात्रा शुरू हो रही है।

हर स्थान का होगा पुख्ता प्रमाण

बता दें कि श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास के संस्थापक डॉक्टर राम अवतार शर्मा के मार्गदर्शन में इन सभी स्थानों को वाल्मीकि रामायण,कालिदास कृत रघुवंशम आदि काव्य एवं अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में वर्णित प्रसंगों के आधार पर चिन्हित किया गया है।इन सभी स्थलों को ऐतिहासिक,पौराणिक और सांस्कृतिक प्रमाण भी रखे गए हैं।इस परियोजना के तहत एक भव्य कॉफी टेबल बुक भी प्रकाशित होगी,जिसमें प्रत्येक स्थल का विस्तृत विवरण,उसका ऐतिहासिक संदर्भ,चित्र,स्थान विशेष की महत्ता और प्रभु श्रीराम के साथ उसका संबंध वर्णित होगा।

ये है श्रीराम वन गमन मार्ग

बता दें कि प्रभु श्रीराम की यात्रा को चार भागों में वर्गीकृत किया गया है।पहली यात्रा विश्वमित्र मुनि के साथ ताड़का वध के लिए हुई,दूसरी यात्रा विवाह के लिए मिथिला तक,तीसरी यात्रा चौदह वर्ष की वनगमन और चौथी यात्रा सिंघलान्क यानी श्रीलंका की यात्रा है।वन यात्रा में चिन्हित स्थान को मानचित्र पर दर्शाया गया है,ये स्थान उत्तर प्रदेश,बिहार,नेपाल,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़,झारखण्ड,ओड़िशा,तेलंगाना,महाराष्ट्र,
कर्नाटक और तमिलनाडु के नगरों,गांवों,जंगलों,पहाड़ियों और समुद्र के किनारे स्थित हैं।इनमें से कई स्थान तो संरक्षण और संवर्धन के अभाव में लुप्त भी हो गए हैं।

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