गोंडा : रुद्र महायज्ञ में गूंजे जय श्री राम के नारे, गीता में सुनाया गया सीता स्वयंवर का प्रेरक प्रसंग
परसपुर (गोंडा ) : ग्राम पंचायत मरचौर के दुबे पुरवा स्थित हनुमान मंदिर पर आयोजित सात दिवसीय रुद्र महायज्ञ एवं संगीतमयी श्रीराम कथा के पांचवें दिन प्रवाचक आलोकनन्द दास जी महाराज ने श्रद्धालुओं को भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों से रूबरू कराया। कथा स्थल भक्तिमय वातावरण से गूंज उठा जब उन्होंने भावपूर्ण शैली में सीता स्वयंवर का प्रसंग सुनाया। प्रवचन में आलोकनन्द दास जी महाराज ने बताया कि राजा जनक ने प्रतिज्ञा की थी—”जो भी वीर शिवधनुष को उठाकर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाएगा, वही मेरी पुत्री सीता का वर बनेगा।” पराक्रमी राजाओं के असफल प्रयासों से राजा जनक निराश हो उठे और सभा में उदासी छा गई। उन्होंने व्यथित होकर कहा, “क्या पृथ्वी वीरों से खाली हो गई है?” जनक के ऐसे शब्दों को सुनकर लक्ष्मण जी ने साहसपूर्वक कहा, “श्रीराम के होते हुए ऐसी वाणी उचित नहीं है, यदि आज्ञा हो तो मैं तो पूरा ब्रह्मांड ही उठा सकता हूँ।” महर्षि विश्वामित्र की अनुमति पर श्रीराम ने विनम्रता के साथ शिवधनुष को प्रणाम किया और सहजता से उसे उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास किया। जैसे ही श्रीराम ने धनुष को खींचा, वह भयानक गर्जना के साथ टूट गया। धनुष भंजन होते ही कथा स्थल “जय श्रीराम” के नारों से गूंज उठा। इसके पश्चात माता सीता ने श्रीराम के गले में वरमाला डालकर उन्हें अपना जीवनसाथी चुना। प्रवचन के अंत में आलोकनन्द दास जी महाराज ने कहा कि सीता स्वयंवर का प्रसंग न केवल धर्म और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि यह सिखाता है कि सच्ची शक्ति केवल बाहुबल में नहीं, बल्कि विनम्रता, संयम और कर्तव्यपरायणता में निहित होती है। इस अवसर पर आदर्श मिश्रा, महेश सिंह, रामानंद जी महाराज, लक्ष्मीकांत शास्त्री, आशीष महाराज सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे। संगीतमय श्रीराम कथा के भावपूर्ण प्रसंगों से श्रोता भावविभोर हो उठे।