
आश्विन मास शुक्ल पक्ष मूल रूप में वसे प्रकृति और पुरुष के प्रतीक आद्याशक्ति स्वरूपा भगवती की आराधना एवं सनातन धर्मियों के मनोमस्तिष्क में बसे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र गान केलिए सुरक्षित है। इसे हम शारदीय नवरात्र के रूप में मानते हुए प्रतिपदा को घर घर में कलश स्थापित कर श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ कर मानते मनाते हैं।
इस वर्ष आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 15 अक्टूबर रविवार को चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग का संयोग बन रहा है इस लिए इस योग के निषेध को मानते हुए कलश स्थापन मध्यान्ह अभिजित मुहूर्त 11/36बजे से 12/34 के बीच किया जायेगा।
👁👁 नवरात्र में दुर्गा सप्तशती पाठ स्वयं करना अथवा पुरोहित द्वारा कराना बाधाओं से मुक्त करते हुए धन धान्य यश ऐश्वर्य एवं परिवार में सुख शांति प्रदान करता है।
रावण पर विजय प्राप्त करने के लिए राम द्वारा की गयी शक्ति पूजा पर आधारित सप्तमी तिथि में पूजा पंडालों में देवी प्रतिमाओं की स्थापना 21/10 शनिवार को की जाएगी।
सप्तमी तिथि को शनिवार होने के कारण देवी का आगमन तुरंग अर्थात् घोड़े पर होगा। जो छत्रभंग कारक एवं कष्ट प्रद है।
रात्रि कालीन अष्टमी तिथि की महानिशा पूजा 21 अक्टूबर शनिवार की रात में ही हो जायेगी। महाअष्टमी व्रत एवं पूजन 22 अक्टूबर रविवार को किया जाएगा एवं आज ही अष्टमी नवमी की संधि पूजा का समय सायं 5/1 से लेकर 5/49बजे तक का समय निर्धारित किया गया है।महानवमी का मान 23 अक्टूबर सोमवार को होगा एवं पूर्ण रात्रि व्रत के समापन का हवन पूजन नवमी तिथि पर्यन्त दिन में 3/10बजे तक लिया जाएगा।
विजया दशमी का मान अपराह्न काल में दसमी तिथि एवं श्रवण नक्षत्र का सहयोग एक साथ हो जाने से 23 अक्टूबर सोमवार को हो जायेगा देवी का गमन महिषा गमने रुज शोककरा का फल प्रदान करेगा। श्रवण नक्षत्र में सरस्वती विसर्जन भी आज किया जायेगा। पूर्ण नवरात्र की पारणा 24 अक्टूबर मंगलवार को प्रातः की जाएगी।
उदयाकालिक दसमी तिथि का मान करने वाले पूजा पंडालों में स्थापित दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन 24/ अक्टूबर को भी कर सकते हैं।
👉पापाकुंशा एकादशी व्रत का मान सबके लिए 25 अक्टूबर बुधवार को होगा।