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फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होलिका दहन के अलावा भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा और व्रत करने का भी विधान है

फाल्गुन महीने की पूर्णिमा पर होलिका दहन की परंपरा है। लेकिन इस पर्व पर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की पूजा के साथ व्रत करने का भी विधान है। इस परंपरा के पीछे एक मान्यता ये है कि समुद्र मंथन के दौरान इस तिथि पर महालक्ष्मी प्रकट हुई थीं। वहीं, दूसरी मान्यता के मुताबिक इस तिथि पर चंद्रमा का जन्म हुआ था। इसलिए जगत को पालने वाले भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा चली आ रही है।

सूर्य-चंद्रमा का प्राकट्य
जयपुर के ज्योतिषाचार्य प्रो. विनोद शास्त्री बताते हैं कि फाल्गुन पूर्णिमा को कश्यप ऋषि के द्वारा अदिति के गर्भ से सूर्य और अनुसूया के गर्भ से चंद्रमा का जन्म हुआ था। अनुसूया पृथ्वी का ही प्रतिनिधि नाम है। सूर्य का प्राकट्य अदिति द्वारा जो परमेष्ठी लोक (विष्णु लोक) का सानिध्य रखती है। पृथ्वी महालक्ष्मी का स्वरूप होती है, इसलिए फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को महालक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

सूर्य-चंद्रमा के योग में लक्ष्मी पूजा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. मिश्र बताते हैं कि फाल्गुन पूर्णिमा पर चंद्रमा, सूर्य की राशि यानी सिंह में होता है और इसके सामने वाली राशि में सूर्य होता है। इन दोनों का समसप्तक योग भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी की पूजा के लिए विशेष शुभ माना जाता है। वहीं, कार्तिक महीने की अमावस्या पर ये दोनों ग्रह एक ही राशि में आ जाते हैं। सूर्य आत्मा कारक और चंद्रमा मन का स्वामी होता है। इसलिए इन दोनों ग्रहों की शुभ स्थिति में भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है।

भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा-विधि
पहले गणेशजी फिर देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करें। इनमें लक्ष्मी जी की मूर्ति चांदी की और भगवान विष्णु की स्फटिक की प्रतिमा हो तो शुभ फल और बढ़ जाता है। लेकिन अन्य धातुओं की मूर्ति भी पूज सकते हैं। विष्णुजी की पूजा में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें और देवी की पूजा करते वक्त ऊँ महालक्ष्मयै नमः मंत्र बोलें।

मूर्तियों में भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी का आवाहन करें। फिर चावल चढ़ाते हुए आसन दें। इसके बाद शुद्ध जल दूध और पंचामृत से देवी का अभिषेक करें। फिर मौली, चंदन, कुमकुम, हल्दी, अक्षत, इत्र, गुलाब और कमल के फूल चढ़ाएं। इसके बाद पीली मिठाई का नैवेद्य लगाकर आरती करें और प्रसाद बाटें।

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