हाल ही में लखनऊ में किसान संगठनों ने महापंचायत की ,इस महापंचायत में किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य की क़ानूनी गारंटी दिए जाने की जिद पर अड़े दिखे |प्रधानमंत्री जी ने किसानों की मांग मानते हुए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की सार्वजनिक घोषणा कर दी और किसानों से घर वापस लौटने का निवेदन भी किया |इस घोषणा के उपरांत राकेश टिकैत और विपक्षी दलों की किसान आंदोलन के सहारे सत्ता वापसी की महत्वाकांक्षा को तगड़ा झटका लगा |
इसके बाद नया पैंतरा चलते हुए राकेश टिकैत ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क़ानूनी गारंटी के लिए कानून बनाने की मांग कर दी |अब सवाल ये पैदा होता है कि हर साल परिवर्तित होने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम् एस पी ) को कैसे किसी सीमा के तहत निर्धारित कर दिया जाये | न्यूनतम समर्थन मूल्य एक ऐसा मुद्दा है जिस पर अर्थशास्त्री और कृषि विशेषज्ञ भी कई गुटों में बंट जाते है तथा एक आम राय /सहमति नहीं बन पाती |
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार अगर क़ानूनी गारंटी प्रदान कर देती है तो किसानों की सारी उपज खरीदने की जिम्मेदारी सरकार की बन जाएगी जो कि व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है ,फिर अगर सरकार ऐसा नहीं कर पायेगी तो किसान अपनी उपज किसे देगा और व्यापारी अगर ज्यादा कीमत पर सरकार द्वारा मज़बूर किया जाता है तो वह काम दाम पर उपज को आयात कर लेना ज्यादा उचित समझेगा |
भारत में कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा जनसँख्या संलग्न है तथा यही सबसे ज्यादा असंगठित रोजगार भी मिलता है ,अतः यह आवश्यक है कि कृषि को लाभकारी बनाने के लिए किसानों को उनकी उपज का उचित दाम दिया जाये तथा सुधारों के माध्यम से किसानों को वैश्विक अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाये जिससे सीमांत और मझोले किसानों को भी लाभ पहुंच सके |
आज ज़रूरत इस बात की है कि किसान संगठन अपनी अप्रासंगिक मांगो को त्याग कर सरकार के साथ सहयोगी रवैया अपनाते हुए छोटे किसानों तथा मझोले किसानों को उनका हक़ दिलवाये ना कि विपक्षी दलों के सत्ता पाने का साधन बने |अगर किसान संगठन अड़ियल रवैया अपनाकर ऐसे ही कृषि सुधार विरोधी कदम उठायेंगे तो ये अस्सी प्रतिशत सीमांत एवं मझोले किसानों के साथ अन्याय करेंगे जोकि किसी भी कृषक वर्ग को मंज़ूर नहीं होगा |दूसरी तरफ सरकार को भी कृषि सुधार हेतु वैकल्पिक साधनों पर ध्यान देना चाहिए ताकि कृषि सुधारों को झटका ना लगे |
(रत्नेश मिश्र ,लेखक शेखर न्यूज़ के राजनैतिक संपादक है )