स्वयं एवं आत्म निर्भर व्यक्ति के भाग्य में कभी दरिद्रता नही आती। वह सदैव देने की स्थिति में रहता है । मांगने का स्वभाव खत्म हो जाता है। हम स्वयं अपने भाग्य को रच सकते हैं। स्वयं अपनी हथेली की रेखाओं को परभाषित कर सकते हैं। यह सब पुरुषार्थ से ही संभव है।❤️👍🙏