■30th■OCTOBER■2021■
मनुष्य की इच्छाओं का पेट
आज तक कोई भी नहीं भर
सका है।
हमारी मूलभूत आवश्यकताएं
सदैव ही सीमित रही हैं एवं एक
सामान्य व संतुलित जीवन हेतु
प्रायः सीमित मूलभूत साधनो की
आवश्यकता होती है जो सामान्य
कौशल व परिश्रम से ही लगभग
सभी को उपलब्ध हो जाते हैं।
किन्तु जब भी हमारी अनावश्यक
इच्छाएं हम पर हावी होने लगती
हैं, हमारे सभी उपलब्ध संसाधन
भी तुच्छ एवं कम पड़ने लगते हैं।
हमारी इच्छाओं के हमारी सोच पर
हावी होते ही एक कभी न समाप्त
होने वाली भूख हमारे मस्तिष्क एवं
हृदय पर अपना वर्चस्व कायम करते
हुए हमारी संतुष्टि की प्रवृत्ति को नष्ट
कर देती है व ये हवस ही हमारे मन
को विचलित व विकृत करती रहती
है। जब हमारी ऐसी सभी इच्छाओं
की पूर्ति नही हो पाती, जो किसी के
लिए भी असंभव है, तो यह मनोवृत्ति
हमारे व्यक्तित्व में नकारात्मकता को
उत्पन्न करते हुए एक मनोविकार का
स्वरूप ले लेती है।
सुप्रभात जी
आपका आज का दिन अत्यन्त शुभ,
सुखद, समृद्ध एवं मंगलकारी हो।।
शब्दों में धार नहीं, बल्कि आधार होना चाहिए
क्योंकि जिन शब्दों में धार होती है वो मन को काटते है
और जिन शब्दों में आधार होता है वो मन को जीत लेते है