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योगी का सफरनामा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ 50 मंत्री, पुराने 22 को भी मंत्रिमंडल में जगह


लखनऊ।
केशव प्रसाद मौर्य के साथ ब्रजेश पाठक योगी आदित्यनाथ सरकार में उप मुख्यमंत्री

योगी 2.0 के शपथ ग्रहण समारोह के मंच पर लगाई गईं कुल 70 कुर्सियां, 51 पर बैठेंगे नए मंत्री

योगी आदित्यनाथ सरकार 2.0 को लेकर लखनऊ के चौराहे, सड़कें व बाजार केसरिया रंग में रंगे, मंदिरों में विशेष पूजा

योगी की संन्यासी से राजधर्म तक की यात्रा नहीं रही आसान, भूमिकाएं बदली तो हर बार रचा इतिहासलोक कल्याण के ध्येय के लिए ही पहले संन्यासी और फिर राजनीतिज्ञ बने योगी।

आमतौर पर संन्यासी का विचार मन में आते ही धर्मस्थल पर बैठकर आराधना कर रहे साधु या योगी का भाव मन- मस्तिष्क में उभरता है। इस प्रचलित धारणा को तोड़ने का काम अगर किसी ने किया है तो वह हैं योगी आदित्यनाथ। पिछले 28 वर्ष से लगातार उन्होंने अपने कार्यों से यह साबित करने की सफल कोशिश की है कि धर्मस्थल पर बैठकर आराध्य की उपासना करने के स्थान पर अपने ईष्ट द्वारा स्थापित लोक कल्याण के सद्मार्ग पर अहर्निश चलते रहना ही एक संन्यासी का वास्तविक धर्म है, जिसका पालन उन्होंने सदैव किया है। संन्यासी के रूप में विधिवत दीक्षित होने के बाद 28 वर्षों में उनकी भूमिकाएं भले ही बदली हों लेकिन योगी के लोक कल्याण की आराधना का ध्येय नहीं बदला।

लोक कल्याण की भावना से जुड़ी है योगी के संन्यासी बनने की कहानी

पांच जून 1972 को देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के पंचूर गांव में वन विभाग के अधिकारी आनंद सिंह बिष्ट के घर जन्मे अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ नाम के संन्यासी बनने की कहानी राष्ट्रवादी विचारधारा और लोककल्याण की भावना से ही जुड़ी है। जीवन की तरुणाई में ही उनका रुझान राम मंदिर आंदोलन की ओर हो गया। इसी सिलसिले में वह तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर ब्रह्मलीन अवेद्यनाथ के संपर्क में आए।

अवेद्यनाथ के सानिध्य में नाथ पंथ के विषय में मिले ज्ञान से योगी के जीवन में ऐसा बदलाव आया कि उन्होंने संन्यास का निर्णय ले लिया और 1993 में गोरखनाथ मंदिर आ गए और पंथ की परंपरा के अनुरूप अध्यात्म की तात्विक विवेचना और योग-साधना में रम गए। नाथ पंथ के प्रति निष्ठा और साधना देखकर महंत अवेद्यनाथ ने 15 फरवरी 1994 को गोरक्षपीठ का उत्तराधिकारी बना दिया।

गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी के तौर पर योगी ने पीठ की लोक कल्याण और सामाजिक समरसता के ध्येय को विस्तारित किया ही, महंत अवेद्यनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद जब 14 सितंबर 2014 को गोरक्षपीठाधीश्वर बने तो यह पूरी तरह से उनके कंधे पर आ गई, जिसे वह बखूबी निभा रहे हैं। इसी भूमिका के तहत ही वह अखिल भारतीय बारह भेष पंथ योगी सभा के अध्यक्ष भी हैं।

ऐसे बढ़ा योगी का राजनीतिक सफर

मात्र 22 साल की उम्र में अपने परिवार का त्याग कर पूरे समाज को परिवार बना लेने वाले योगी आदित्यनाथ ने लोक कल्याण को ध्येय बनाने के क्रम में ही अध्यात्म के साथ-साथ राजनीति में भी कदम रखा और मात्र 26 की उम्र में लोकसभा के सबसे कम उम्र के सदस्य बन गए। फिर तो राजनीति में उनके कदम जो बढ़े, वह बढ़ते ही गए। गोरखपुर की जनता ने योगी लगातार पांच बार अपना सांसद चुना। अभी यह सिलसिला चल ही रहा था कि उनकी राजनीतिक क्षमता को देखते हुए 2017 में भाजपा नेतृत्व ने उन्हें प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व सौंप दिया।

मुख्यमंत्री के रूप में योगी ने प्रदेश को जो उपलब्धि दिलाई, वह सर्वविदित है। चंद दिन पहले पहले हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रचंड बहुमत देकर जनता ने उनके नेतृत्व पर मुहर भी लगा दी। संसदीय चुनावों में वह अजेय रहे योगी आदित्यनाथ पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े और एक लाख से अधिक मतों से जीतकर अपनी अपराजेय लोकप्रियता को फिर से प्रमाणित कर दिया। यही वजह है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ दिलाने जा रहा है। वह आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े राज्य के दोबारा मुख्यमंत्री बनने के का इतिहास रचने जा रहे हैं।

नोएडा जाने का मिथक तोड़ा

योगी आदित्यनाथ प्रदेश के अबतक के इकलौते मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने प्रदेश के हर जिले का कई बार दौरा करने के साथ नोएडा जाने के मिथक को भी तोड़ा है। पहले मुख्यमंत्री इस मिथक के भय से नोएडा नहीं जाते थे कि वहां जाने से कुर्सी चली जाती है। योगी ने आधा दर्जन से अधिक बार नोएडा की यात्रा कर यह साबित किया है कि एक संत का ध्येय सिर्फ सत्ता बचाए रखना नहीं बल्कि लोक कल्याण होता है।

संत के रूप में योगी की उपलब्धियां

वर्ष 1997, 2003, 2006 में गोरखपुर में और 2008 में तुलसीपुर (बलरामपुर) में विश्व हिन्दू महासंघ के अन्तरराष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन। सहभोज के माध्यम से छुआछूत और अस्पृश्यता की भेदभावकारी रूढ़ियों पर प्रहार।

लेखक और संपादक भी हैं योगी

‘यौगिक षटकर्म, ‘हठयोग: स्वरूप एवं साधना’, ‘राजयोग: स्वरूप एवं साधना’ और ‘हिन्दू राष्ट्र नेपाल’ पुस्तकों का लेखन योगी आदित्यनाथ ने किया है। मुख्यमंत्री गोरखनाथ मंदिर से प्रकाशित मासिक योग पत्रिका ‘योगवाणी’ के प्रधान सम्पादक भी हैं।

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