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क्या है कोरोना का कोरोना XE वैरिएंट?

  • नवंबर 2021 में साउथ अफ्रीका में मिला कोरोना का वैरिएंट ऑफ कंसर्न ओमिक्रॉन इस साल दुनिया में पाए गए कोरोना के 90% से ज्यादा केसेज के लिए जिम्मेदार है।
  • ओमिक्रॉन के तीन सब-वैरिएंट हैं- BA.1, BA.2 और BA.3, लेकिन पहले दोनों सब-वैरिएंट ही ज्यादा घातक हैं, जबकि BA.3 उतना संक्रामक नहीं है।
  • XE वैरिएंट ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट BA.1 और BA.2 के कॉम्बिनेशन से बना है, यानी ये ‘रिकॉम्बिनेंट’ या हाइब्रिड वैरिएंट है।
  • रिकॉम्बिनेंट वायरस दो पहले से मौजूद वैरिएंट के कॉम्बिनेशन से बनते हैं। ऐसा वायरस में लगातार हो रहे म्यूटेशन यानी परिवर्तन की वजह से होता है।
  • कोरोना के मामले में रिकॉम्बिनेंट वैरिएंट दो पहले से मौजूद वैरिएंट के जेनेटिक मैटीरियल के मिलने से बनते हैं।
  • यानी एक ही व्यक्ति के एक ही समय पर दो कोरोना वैरिएंट से संक्रमित होने से उसके शरीर में इन दोनों वैरिएंट के जेनेटिक मैटीरियल मिल जाते हैं, जिससे बनने वाले वैरिएंट को ‘रिकॉम्बिनेंट’ कहते हैं।
  • रिकॉम्बिनेंट वैरिएंट नया नहीं है, इससे पहले भी डेल्टा और ओमिक्रॉन वैरिएंट के रिकॉम्बिनेंट के केस पाए जा चुके हैं।
  • WHO ने कहा है कि XE को फिलहाल नए वैरिएंट के बजाय ओमिक्रॉन के सब-वैरिएंट कैटेगरी में रखा गया है।

भारत को XE वैरिएंट से कितना खतरा है ?

  • भारत में XE वैरिएंट समेत कोरोना के किसी भी वैरिएंट के फैलने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता है।
  • XE ओमिक्रॉन के ही दो सब-वैरिएंट के म्यूटेशन से बना है, ऐसे में संभव है कि देश में XE वैरिएंट के केस पहले ही मौजूद हों, लेकिन अभी उनकी पहचान होना बाकी हो।
  • साथ ही भारत 27 मार्च से दुनिया के सभी देशों के लिए इंटनेशनल फ्लाइट्स का ऑपरेशन शुरू कर चुका है। ऐसे में विदेशों से भी XE समेत किसी भी वैरिएंट के आने का खतरा बरकरार रहेगा।
  • जानकारों के मुताबिक, फिलहाल भारत को XE वैरिएंट से ज्यादा खतरा नहीं है, क्योंकि ये ओमिक्रॉन से जुड़ा सब-वैरिएंट है, जिसकी लहर हाल ही में देश से गुजरी है और जिससे देश में करीब 50-60% लोग संक्रमित हुए थे।
  • ऐसे में ओमिक्रॉन से पैदा हुई इम्यूनिटी के इतनी जल्दी खत्म होने की संभावना नहीं है कि XE वैरिएंट लोगों को प्रभावित कर सके।
  • भारत में ओमिक्रॉन की वजह से आई तीसरी लहर खत्म हो चुकी है और डेली कोरोना केस 1 हजार के आसपास ही रह गए हैं और एक्टिव केसेज 12 हजार से कम रह गए हैं। देश में डेली और एक्टिव केसेज पिछले दो सालों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गए हैं।

क्या वैक्सीन लगने के 9 महीने बाद बाद एंटीबॉडी घटने से कोरोना का खतरा बढ़ा है?

  • अब तक की रिसर्च से पता चला है कि वैक्सीन की दूसरी डोज लगने के 8-9 महीने के बाद एंटीबॉडी कम होने लगती है। ऐसे में कोरोना होने का खतरा बना रहता है। इसलिए एंटीबॉडी बनाए रखने के लिए कोरोना की बूस्टर डोज की जरूरत पड़ती है।
  • केंद्र सरकार ने चौथी लहर के खतरे को देखते हुए अब 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों के लिए बूस्टर डोज की मंजूरी दे दी है। 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोग 10 अप्रैल से निजी केंद्र पर बूस्टर डोज लगवा सकेंगे। हालांकि, इसके लिए उन्हें पैसे चुकाने होंगे।
  • इससे पहले केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य कर्मियों और 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के लिए बूस्टर डोज की अनुमति दी थी।

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