क्या सिद्धू पर कल्पेबल होमीसाइड का आरोप होना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई के लिए राजी।
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को और अधिक परेशानी हो सकती है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को पुनर्विचार याचिका के दायरे का विस्तार करने के लिए याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया है, ताकि यह जांच की जा सके कि क्या उन्हें चोट पहुंचाने के बजाय कल्पेबल होमीसाइड के अपराध के लिए दंडित किया जा सकता है, जिसके लिए उन्हें 2018 में दोषी ठेराया गया था और दंडित किया गया लेकीन फिर शीर्ष अदालत द्वारा जुर्माने के साथ छोड़ दिया गया था।
हालांकि शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि सिद्धू के मामले में अपने आदेश के खिलाफ समीक्षा याचिका केवल इस मुद्दे पर सीमित होगी कि सजा की मात्रा बढ़ाई जाए या नहीं, परंतु अब वह धारा 323 के तहत 32 साल पुराने रोड रेज मामले की बजाय, आईपीसी की धारा 299 के तहत उनकी दोषसिद्धि की मांग करने वाले एक आवेदन पर सुनवाई के लिए सहमत हुई है।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने कहा क्योंकि आवेदन दायर किया गया है, इसलिए उन्हें समीक्षा याचिका के दायरे का विस्तार करने के मुद्दे से डील करना होगा। और राजनेता से दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने को कहा गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से, सिद्धार्थ लूथरा ने तर्क दिया कि 2018 का फैसला गलत था और यह कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ था और अदालत की ओर से यह कहना भी गलत था कि कोई मेडिकल सबूत नहीं है। “कानून यह कहता है कि यदि कोई व्यक्ति घायल हो जाता है और उन चोटों के कारण अस्पताल में भर्ती होता है और किसी अन्य बीमारी (इस मामले में कथित दिल का दौरा) से पीड़ित होता है, और पीड़ित की बाद में मृत्यु हो जाती है; यहां तक कि उन मामलों में भी ,आरोपी स्पष्ट रूप से आईपीसी की धारा 299 के दायरे में आने वाले अपराध के दोषी होते हैं।”
सिद्धू की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने उनकी याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अदालत ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा था कि समीक्षा केवल सजा पर है और आदेश के चार साल बाद समीक्षा याचिका का दायरा नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि SC ने माना था कि वह मौत का कोई कारण नही है और निष्कर्ष की फिर से जांच करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
हालांकि, लूथरा ने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे की फिर से जांच की जानी चाहिए क्योंकि अदालत ने विशेषज्ञ चिकित्सा साक्ष्य पर अपनी राय को गलत तरीके से बदल दिया है।
कोर्ट ने अर्जी पर सुनवाई पर सहमति जताते हुए कहा कि पूरे मामले को दोबारा खोलने की इजाजत नहीं दी जा सकती।पीठ ने कहा कि समीक्षा याचिका के दायरे का विस्तार करना समस्याग्रस्त होगा क्योंकि दूसरा पक्ष बरी करने के लिए दबाव डालेगा।