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उत्तर प्रदेश में पांच चरणों में पिछले चुनाव के बराबर हुई मतदान से, पसोपेश में दल

Shekhar News

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सात में से पांच चरणों में डाले गए वोटों का फीसद पिछले विधानसभा चुनाव के लगभग बराबर ही है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के सात में से पांच चरणों में डाले गए वोटों का फीसद पिछले विधानसभा चुनाव के लगभग बराबर ही है। ऐसे में राजनीतिक पार्टियां इस पसोपेश में हैं कि इसे सत्ता के पक्ष में मतदान माना जाए या सत्ता विरोधी लहर का असर। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में हुए मतदान के फीसद पर भी निगाह डालें तो कोई खास फर्क नहीं दिखाई देता।

जहां मतदान का फीसद नहीं बढ़ने के पीछे कोविड-19 महामारी को एक प्रमुख वजह के तौर पर देखा जा रहा है, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि मतदाताओं ने चुनाव में अब तक सभी पार्टियों को आजमा लिया है, लिहाजा उनमें अब मतदान के प्रति वह जोशोखरोश नहीं रहा। प्रदेश में सात में से पांच चरणों का विधानसभा चुनाव हो चुका है।
बाकी दो चरणों का मतदान आगामी तीन और सात मार्च को होगा। पहले चरण के चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 विधानसभा सीटों पर 10 फरवरी को औसतन 62.43% मतदान हुआ था जो वर्ष 2017 के 63.47% के मुकाबले एक फीसद से कम था। वहीं, 14 फरवरी को हुए दूसरे चरण के मतदान में 64.42 फीसद मतदान हुआ और यह भी पिछली बार के मुकाबले 1.11 फीसद कम रहा।
तीसरे चरण में 62.28% मतदान हुआ जो पिछली बार के मुकाबले 0.07 फीसद ज्यादा था। चौथे चरण में 23 फरवरी को राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश की 59 सीटों पर औसतन 61.52% मतदान हुआ जो वर्ष 2017 में हुए 62.55 फीसद मतदान से 1.03% कम रहा। पांचवें चरण में अयोध्या, प्रयागराज, अमेठी और रायबरेली समेत विभिन्न जिलों की 61 विधानसभा सीटों पर औसतन 57.32% मतदान हुआ। यह भी वर्ष 2017 के मुकाबले लगभग एक फीसद कम रहा।
प्रदेश विधानसभा के छठे चरण का चुनाव तीन मार्च को होगा। इस चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उम्मीदवारी वाली गोरखपुर नगर की हाई प्रोफाइल सीट के लिए भी वोट पड़ेंगे। वर्ष 2017 में इस चरण की सीटों पर 56.52% मतदान हुआ था। सातवें चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी की सीटों समेत कुल 54 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होगा। वर्ष 2017 में इस चरण की सीटों पर 59.56% मतदान हुआ था।
मतदान फीसद में बढ़ोतरी नहीं होने के बारे में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी ने बताया, मुझे ताज्जुब है कि आखिर इस बार मत प्रतिशत में बढ़ोतरी क्यों नहीं हुई? हो सकता है कि इस बार मतदाताओं को जागरूक करने के प्रयासों में कुछ कमी रह गई हो। सेंटर फार द स्टडी आफ डेवलपिंग सोसाइटीज के अनुसंधान कार्यक्रम लोक नीति के सह निदेशक प्रोफेसर संजय कुमार ने बताया, अगर आप पिछली बार के मत प्रतिशत से तुलना करें तो बहुत ज्यादा गिरावट नहीं आई है।
आमतौर पर जब लोग सरकार बदलना चाहते हैं तो ज्यादा मतदान का माहौल बनता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में यह नजर भी आया था। उन्होंने कहा कि मतदाताओं के मन में मतदान के प्रति एक उदासीनता भी है। यह सत्ता के पक्ष की बात है या फिर उसके विरोध की, यह तो चुनाव के नतीजे घोषित होने के बाद ही पता चलेगा।

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