WhatsApp Image 2024-01-08 at 6.55.15 PM
WhatsApp Image 2024-01-08 at 6.55.16 PM (1)
WhatsApp Image 2024-01-08 at 6.55.16 PM (2)
WhatsApp Image 2024-01-08 at 6.55.16 PM
WhatsApp Image 2024-01-08 at 6.55.17 PM (1)
IMG_20240301_142817
IMG_20240301_142817
IMG_20240301_142817
previous arrow
next arrow
उत्तरप्रदेश
Trending

7 अप्रैल/पुण्य-तिथि 1857 की अप्रतिम योद्धा बेगम हजरत महल

शेखर न्यूज़ की कलम स अविस्मरणीय स्वतंत्रता इतिहास

1857 के स्वाधीनता संग्राम में जो महिलाएं पुरुषों से भी अधिक सक्रिय रहीं, उनमें बेगम हजरत महल का नाम उल्लेखनीय है। मुगलों के कमजोर होने पर कई छोटी रियासतें स्वतन्त्र हो गयीं। अवध भी उनमें से एक थी। श्रीराम के भाई लक्ष्मण के नाम पर बसा लखनऊ नगर अवध की राजधानी था।

हजरत महल वस्तुतः फैजाबाद की एक नर्तकी थी, जिसे विलासी नवाब अपनी बेगमों की सेवा के लिए लाया था; पर फिर वह उसके प्रति भी अनुरक्त हो गया। हजरत महल ने अपनी योग्यता से धीरे-धीरे सब बेगमों में अग्रणी स्थान प्राप्त कर लिया। वह राजकाज के बारे में नवाब को सदा ठीक सलाह देती थी। पुत्रजन्म के बाद नवाब ने उसे ‘महल’ का सम्मान दिया।

वाजिदअली शाह संगीत, काव्य, नृत्य और शतरंज का प्रेमी था। 1847 में गद्दी पाकर उसने अपने पूर्वजों द्वारा की गयी सन्धि के अनुसार रियासत का कामकाज अंग्रेजों को दे दिया। अंग्रेजों ने रियासत को पूरी तरह हड़पने के लिए कायर और विलासी नवाब से 1854 में एक नयी सन्धि करनी चाही। हजरत महल के सुझाव पर नवाब ने इसे अस्वीकार कर दिया।

इससे नाराज होकर अंग्रेजों ने नवाब को बन्दी बनाकर कोलकाता भेज दिया। इससे क्रुद्ध होकर हजरत महल ने अपने 12 वर्षीय पुत्र बिरजिस कद्र को नवाब घोषित कर दिया तथा रियासत के सभी नागरिकों को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध खुला युद्ध छेड़ दिया।

अंग्रेजों ने नवाब की सेना को भंग कर दिया था। वे सब सैनिक भी बेगम से आ मिले। बेगम स्वयं हाथी पर बैठकर युद्धक्षेत्र में जाती थी। अंततः पांच जुलाई, 1857 को अंग्रेजों के चंगुल से लखनऊ को मुक्त करा लिया गया। अब वाजिद अली शाह भी लखनऊ आ गये।

इसके बाद बेगम ने राजा बालकृष्ण राव को अपना महामंत्री घोषित कर शासन के सारे सूत्र अपने हाथ में ले लिये। उन्होंने दिल्ली में बहादुरशाह जफर को यह सब सूचना देते हुए स्वाधीनता संग्राम में पूर्ण सहयोग का वचन दिया। उन्होंने खजाने का मुंह खोलकर सैनिकों को वेतन दिया तथा महिलाओं की ‘मुक्ति सेना’ का गठन कर उसके नियमित प्रशिक्षण की व्यवस्था की।

एक कुशल प्रशासक होने के नाते उनकी ख्याति सब ओर फैल गयी। अवध के आसपास के हिन्दू राजा और मुसलमान नवाब उनके साथ संगठित होने लगे। वे सब मिलकर पूरे क्षेत्र से अंग्रेजों को भगाने के लिए प्रयास करने लगेे; पर दूसरी ओर नवाब की अन्य बेगमें तथा अंग्रेजों के पिट्ठू कर्मचारी मन ही मन जल रहे थे। वे भारतीय पक्ष की योजनाएं अंग्रेजों तक पहुंचाने लगे।

इससे बेगम तथा उसकी सेनाएं पराजित होने लगीं। प्रधानमंत्री बालकृष्ण राव मारे गये तथा सेनापति अहमदशाह बुरी तरह घायल हो गये। इधर दिल्ली और कानपुर के मोर्चे पर भी अंग्रेजों को सफलता मिली। इससे सैनिक हताश हो गये और अंततः बेगम को लखनऊ छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

1857 के स्वाधीनता संग्राम के बाद कई राजाओं तथा नवाबों ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली। वे उनसे निश्चित भत्ते पाकर सुख-सुविधा का जीवन जीने लगे; पर बेगम को यह स्वीकार नहीं था। वे अपने पुत्र के साथ नेपाल चली गयीं। वहां पर ही अनाम जीवन जीते हुए सात अप्रैल, 1879 को उनका देहांत हुआ। लखनऊ का मुख्य बाजार हजरत गंज तथा हजरत महल पार्क उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाये है।

Related Articles

Back to top button