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जहांगीरपुरी हिंसा: आरोपियों पर कार्रवाई के लिए जब अमित शाह ने संभाली कमान, 48 घंटे में ‘मिसाल’ से बुलडोजर तक पहुंची ये कहानी

मंगलवार देर रात नगर निगम को दिल्ली पुलिस से चार सौ जवान मुहैया करा दिए गए। अब बारी बुलडोजर की थी। लंबे समय से एमसीडी में भाजपा की सत्ता रही है, लेकिन पहले कभी अवैध निर्माण हटाने या गिराने की बात नहीं हुई। अब चूंकि अमित शाह इस मामले पर नजर रखे हुए थे तो नगर निगम भी बुलडोजर चलाने के लिए तैयार हो गया…

जहांगीरपुरी सांप्रदायिक हिंसा के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोपियों पर सख्त ‘एक्शन’ के लिए दिल्ली पुलिस को आदेश दिए थे। उन्होंने दिल्ली पुलिस को यहां तक कह दिया था कि वह हिंसा करने वालों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करें जो मिसाल बन जाए। हिंसा के बाद महज 48 घंटे में ‘अमित शाह’ के दिशा निर्देशन में चार अहम फैसले लिए गए। इन्हीं फैसलों में ‘मिसाल’ से ‘बुलडोजर’ तक पहुंची कहानी का सार छिपा है। बुधवार को जहांगीरपुरी में ‘बुलडोजर’ चल पड़ा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के ‘स्टे’ ऑर्डर के बाद बुलडोजर को वापस जाना पड़ा।

एमसीडी ने इतने वर्षों से चुप्पी साधे रखी!…

हनुमान जन्मोत्सव पर जहांगीरपुरी इलाके में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद वहां बड़े स्तर पर अवैध निर्माण होने की बात सामने आई थी। ये अलग बात है कि एमसीडी ने इतने वर्षों से चुप्पी साधे रखी। दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष आदेश गुप्ता का कहना है, जहांगीरपुरी की हिंसा में पकड़े दंगाइयों को ‘आप’ का संरक्षण प्राप्त है। वहां पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस बाबत नगर निगम को दंगाइयों के अवैध निर्माण एवं अतिक्रमण पर कार्रवाई करने के लिए कहा था। हिंसा के बाद भाजपा द्वारा इस इलाके में वर्षों से जारी अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलाने की मांग की गई थी। नगर निगम को दिल्ली पुलिस एवं केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 400 जवान मिल गए। बुधवार सुबह दस बजे बुलडोजर, जहांगीरपुरी में पहुंच गया।

‘रासुका’ लगाने के लिए दिल्ली पुलिस को मिली इजाजत

फरवरी 2020 की सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी। उस वक्त भी अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री थे। विपक्षी दलों ने तब केंद्रीय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के एक्शन पर सवाल उठाए थे। इस बार अमित शाह वैसा कोई जोखिम नहीं लेना चाहते थे। उन्होंने दंगों के अगले ही दिन दिल्ली पुलिस को आदेश दे दिया कि वह हिंसा करने वालों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई करे कि वो मिसाल बन जाए। जहांगीरपुरी हिंसा के बाद अमित शाह का यह पहला ‘वार’ था।

दिल्ली पुलिस ने कुछ आरोपियों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने के लिए गृह मंत्रालय से इजाजत मांगी तो वह भी तुरंत मिल गई। यह अमित शाह का दूसरा वार था। दिल्ली पुलिस ने बिना कोई देरी किए दंगे के आरोपी अंसार, सलीम, सोनू उर्फ इमाम उर्फ यूनुस, दिलशाद और अहिर पर ‘रासुका’ लगा दिया है। इसके बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 1987 बैच के आईएएस अधिकारी नरेश कुमार को दिल्ली का मुख्य सचिव लगाए जाने संबंधी आदेश जारी कर दिया।

अमित शाह की नजर थी तो बुलडोजर भी पहुंच गया

मंगलवार देर रात नगर निगम को दिल्ली पुलिस से चार सौ जवान मुहैया करा दिए गए। अब बारी बुलडोजर की थी। केंद्रीय गृह मंत्रालय चाहता था कि जहांगीरपुरी हिंसा के सभी कारणों पर गौर किया जाए। अगर वहां पर अवैध कब्जा है तो उसे हटाना होगा। लंबे समय से एमसीडी में भाजपा की सत्ता रही है, लेकिन पहले कभी अवैध निर्माण हटाने या गिराने की बात नहीं हुई। अब चूंकि अमित शाह इस मामले पर नजर रखे हुए थे तो नगर निगम भी बुलडोजर चलाने के लिए तैयार हो गया। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी कहते हैं, देश में शांति के माहौल को जानबूझकर खराब किया जा रहा है। जहांगीरपुरी की मस्जिद के पास पुलिस क्यों नहीं थी? अगर पुलिस प्रशासन चाहता तो वहां हिंसा को रोका जा सकता था। जब शोभायात्रा में कई लोग डंडे और रॉड लेकर चल रहे थे तो वहां पुलिस क्यों नहीं पहुंची।

आसान नहीं है रासुका से बाहर निकलना

राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगने के बाद व्यक्ति के लिए इसके शिकंजे से बाहर निकलना आसान नहीं है। इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति को खास खतरे के चलते हिरासत में लिया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति के कारण देश की सुरक्षा और सद्भाव खतरे में पड़ता है, तो भी उस पर ‘रासुका’ लग सकता है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980 के तहत किसी व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रख सकता है। अगर सरकार को लगता है कि उस मामले में कुछ नए सबूत मिले हैं तो हिरासत की अवधि को बढ़ाया जा सकता है। रासुका के अंतर्गत जब किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो वह अवधि 12 दिन से ज्यादा नहीं हो सकती। अगर उस गिरफ्तारी पर राज्य सरकार का अनुमोदन मिल जाता है तो उस अवधि को आगे बढ़ाया जा सकता है। कोविड संक्रमण के दौरान जब कई राज्यों में डॉक्टर व नर्स सहित दूसरे कोरोना योद्धाओं पर हमले होने लगे तो उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश की सरकारों ने कुछ लोगों पर ‘रासुका’ लगाया था।

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